महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा लिखित सत्यार्थप्रकाश के तीसरे समुल्लास में सुझाए गए आर्ष -ग्रन्थों के अध्ययन का विवरण इस प्रकार है। अच्छे संस्कारयुक्त, स्मृतिशील और मेधावी विद्यार्थी 30 से 34 वर्ष की आयु में संपूर्ण वैदिक वाङ्गमय का तलस्पर्शी मूर्धन्य विद्वान् बन सकता है। अध्ययन के रूपरेखा का निम्नवत् प्रकार है|

  1. तीन वर्ष में वर्णोच्चारण शिक्षा, अष्टाध्यायी से महाभाष्य तक व्याकरण का ज्ञान पूर्ण करें।
  2. 6 से 8 वर्ष तक शब्दकोष एवं निरुक्त का अध्ययन।
  3. चार मास में छन्द शास्त्र।
  4. एक वर्ष में मनुस्मृति, वाल्मिकी रामायण और महाभारत में समाहित विदुरनीति।
  5. दो वर्ष में सम्पूर्ण दृष्टि विज्ञान। इसमें वेदान्त दर्शन से पूर्व दशोपनिषत् का सम्पूर्ण अध्ययन किया गया है।
  6. छह वर्षों में चार ब्राह्मणों का अध्ययन, वेदों के स्वर, ध्वनि, अर्थ और उनके संबंध या क्रियाओं के साथ।
  7. चार वर्षों में चरक, सुश्रुत जैसे आयुर्वेदिक ग्रंथों का अध्ययन।
  8. धनुर्वेद दो वर्ष में।
  9. दो वर्ष में गन्धर्ववेद।
  10. दो वर्ष में अर्थवेद।
  11. दो वर्षों में ज्योतिष – सूर्यसिद्धांतादि ग्रंथों का अध्ययन।
  12. एक वर्ष में यांत्रिक कला एवं वास्तुकला का अध्ययन। उपरोक्त नियमावली उन लोगों के लिए है जो अत्यधिक कुशाग्र, बुद्धिमान् व जिज्ञासु प्रवृत्ति के सुधीजन हैं। स्मरण-क्षमता, एकाग्रता और दृढ़ संकल्प व पूर्ण निष्ठा इसमें प्रमुख उपकारक हैं। जो लोग साङ्गोपाङ्ग वेदों का अध्ययन करना चाहते हैं वे इस योजना के साथ आगे बढ़ सकते हैं।

परन्तु मानव-जीवन में समय एवं कार्यक्षमता में हुयी गिरावट के इस युग में भी जो लोग आर्ष – अध्ययन में इतना समय नहीं दे पाते हैं, किन्तु वे यदि कम से कम 5 वर्ष तक इस आर्ष अध्ययन को पूरा करने के लिए तैयार हैं, तो वे पतंजलिमहाभाष्यम् सहित अन्य प्रमुख शास्त्रों के मुख्य-मुख्य बिंदुओं पर दृष्टिपात करके कंठस्थीकरण कर सकते हैं।

और इसीलिए वेदगुरुकुलम् करालमन्ना केरला ऐसे जिज्ञासु छात्रों के लिए ऐसे आर्ष- अध्ययन की सुविधाएं प्रदान करता है।
जो लोग इसमें रुचि रखते हैं वे इस

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लिंक पर पंजीकरण करा सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए इस नम्बर पर 7907077891,9446017440 अविलम्ब संपर्क करें (सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक)

टीम। वेद-गुरुकुलम् कारलमन्ना पालक्कड जनपद, केरल, भारत

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